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Friday, March 26, 2010



चीटी और टिड्डे की कहानी
चीटी और टिड्डे की है यह कहानी
सालों से सुनाई गयी है ज़ुबानी
अरे वही सारी गर्मी जी तोड़ मेहनत की चीटी ने ताकि आराम से कटे सर्दी के दिन
और टिड्डा???
मनमौजी मस्तकालंदर घूमता रहा मार्च से सितम्बर
जहां आया सर्दी का मौसम रोता रहा बेचारा गुमसुम!!!
चलिए उसी कहानी को हम दौहराते है आज की शाम
चीटी बेचारी आम जनता हरदिन की भागा दौरी में खिच रही थी अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी को
गर बचा पाए कुछ तो काम आयेगी सर्दी में!
और टिड्डा???
मनमौजी मस्तकालंदर घूमता रहा मार्च से सितम्बर
जहां आया सर्दी का मौसम रोता कहाँ बेचारा गुमसुम???
उल्टा टिड्डे ने किया कमाल, जनता में मचा दिया धमाल
यह कहाँ की नाइंसाफी? मै भूखा और चीटी मस्त?
दुनिया के भूखे नंगे मेरे भाइयों सर्दी में मै बेचारा
न घर द्वार न सहारा!!!
भाइयों! अपने गरीब भाई को बचायो दुनियावालो समझो मेरी परेशानी
यह चीटी है बड़ी सयानी
अपने ही स्वार्थ में मगन हालत यह कैसे आये हे भगवान् !!!
सुनकर टिड्डे का यह हाहाकार दुश्चिंता में पद गयी सरकार
जनता ने किया भारी टिड्डे के दुःख में भर आया सब का मन
स्वयं सेवी थी जितनी भी संस्था, जुट गयी बदलने में टिड्डे की अबस्था
पत्रकारों ने किया हल्ला खाली करो ए चीटी ये मोहल्ला
शर्म करो ए स्वार्थी चीटी टिड्डे के दुःख में तेरी आंख नहीं रोई ???
भूख हड़ताल में बैठे कुछ नेता सबने भाषणों में चीटी को खूब लपेटा
सब मिलकर घुसे चीटी के घर मिनटों में चीटी घर से बाहर
माहौल बिगड़ न जाये इस डर से पुलिसवालों ने ख़याल था रख्खा
टिड्डे को घर में बसा कर इंतजाम किया वे पक्का
इतना शख्त था मामला यह सारा पता नहीं कैसे संभला टिड्डा बेचारा
इस तरह समाप्त हुआ यह महान संग्राम दीवाने ख़ास बनाम दीवाने आम
और चीटी???
हुज़ूर छोड़ीये उस चीटी को
आलसी लालची जान एक छोड़ दीजिये सर्दी में उसे मरने को ...